देवभूमि चौथान के पवित्र धार्मिक स्थल
मनोरम वादियों के बीच विराजमान बिंदेश्वर पावन धाम।
दूधातोली वनभूमि (दूध-तोली अर्थात दूध की तोली । दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं की औसतन ऊंचाई 4000 से 10500 फीट है। दूधातोली वनक्षेत्र 200 किलोमीटर के एक विशाल पर्वतीय क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें 4 चारागाह है। यहां हर वर्ष गढवाल कुमाऊँ से सैकड़ों की संख्या में खरकवाल (ग्वाले) अपने हजारों दुधारू मवेशियों (भैस, गाय, भेड़-बकरियों) के साथ ग्रीष्म ऋतु एवं वर्षा ऋतु में आते हैं और अपने- अपने खरकों में रहते हैं। (खर्क-लकड़ियों से बने मकान) यहाँ जानवरों के लिए पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारा उपलब्ध होता है जानवर स्वतः ही अपना भोजन घास एवं जंगली वनस्पतियों से प्राप्त कर लेते है। खरकवाल जानवरों को सुबह शाम दोहते है तो उस दौरान एक भैंस दो तौली (लगभग 20 लीटर) तक दूध देती है। दूसरा वहां पर एक घास है जिसे दूधिया कहते है जिसे खाकर जानवर दुगना एवं स्वादिष्ट दूध देते है। एक अनुमान के तहत कभी कभी यहां 5000 मवेशी तक पड़ाव डालते हैं।
दूधातोली देवभूमि हिमभूमि दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं की ऊंचाई अधिक होने के कारण यहां हिम पात होता रहता है इसलिए इसे हिमभूमि कहने पर अतिसयोक्ति नहीं होगी। दूधातोली की भौगोलिक स्थिति उत्तराखंड के मानचित्र पर दूधातोली गढ़वाल और कुमाऊ के बीचों-बीच स्थित है। दूधातोली की तलहटी में चांदपुर, चौथान, ढैज्यूलि और लोहवा पट्टियां बसी हुई हैं। यह क्षेत्र अक्षांतर 10.15 पूर्व तथा देशांतर 30.5 उत्तर के मध्य फैला हुआ है। दूधातोली का क्षेत्रफल लगभग 200 वर्ग किलोमीटर है। प्रकृति ने दूधातोली को बड़े सुन्दर, सजीले ढंग से सजाया-सवास है।
दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं से बहने वाली नदियाँ पूर्वी नयार- दूधातोली के दक्षिण पश्चिम जोखीधार श्रेणी से स्यूंसी कैन्यूर गाड़ के नाम से निकलती है। यहाँ दूधातोली, कैन्यूर, बैजरो सतपुली तक 109 किलोमीटर बहती है। पश्चिमी नयार दूधातोली के उत्तरी पश्चिमी ढाल से स्योली गाड़ व ढाई ज्यूली गाड़ नामक दो शाखाओं के रूप में निकलती है दूधातोली स्योली खंड, पैठाणी पाबों सतपुली तक 78 किलोमीटर बहती है। पश्चिम रामगंगा तन्त्र- यह नदी पौड़ी, चमोली तथा अल्मोडा तक फैली दूधातोली श्रेणी के पूर्वी ढाल से निकलती है। उत्तराखंड राज्य में बहने के बाद रामगंगा नदी अपनी सहायक धाराओं के साथ पौड़ी जिले में कालागढ़ नामक स्थान पर उत्तरप्रदेश राज्य में प्रवेश करती है जहाँ यह नदी कन्नौज जिले में गंगा में समाहित हो जाती है। बिरमा गगास और अराध्य देव बिनसर के चरणों से वहने वाली अनेक जलधाराएँ झरने, गाड, गदेरे जैसे संकार गाड़, मसान गाड़ जो आगे जाकर विनोद नदी बनती है और देघाट में रामगंगा में विलीन हो जाती है। चौधान आज लोग चौथान पट्टी को जानते हैं तो उसकी केवल दो वजह है। पहला केदारनाथ के साक्षात स्वरूप भगवान विन्देश्वर (बिनसर महादेव का मन्दिर और दूसरा पेशावर काण्ड के महान नायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की जन्मस्थली ।
चौथान का शाब्दिक अर्थ चारों ओर थान (मन्दिर) का स्थित होना है। बिन्देश्वर मन्दिर के अलावा चौथान पट्टी में सैकड़ों मन्दिर है जिनका अपना अलग-अलग महत्व है। चौथान पट्टी के अंतर्गत 72 गाँव आते हैं यह तीन जिलों पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा की सीमाओं से घिरा हुआ है जिसके कारण यहां तीनों प्रकार की बोलियां बोली जाती है और इन तीनों बोलियों का मिश्रण से बनी एक अलग तरह की बोली भी बन जाती है।
कहते हैं कि अंग्रेजों को भी चौथान पट्टी बहुत भाता था इसीलिये अंग्रेजो ने अपने शासनकाल में चौथान का केन्द्र बूगीधार में सन 1906 ईसवी में ठहरने के लिये एक बंगला भी बनाया था और दूसरा बंगला 12 कि०मी० दूर दैड़ा गांव के नजदीक बनाया। इसके अलावा सन 1906 में तीन पुलों का निर्माण भी किया था जो आज भी मौजूद हैं। चौथान पट्टी में उफरेखाल, कल्याणखात, जगतपुरी, बुंगीधार, वीरुधुनि और नागचुलाखाल मुख्य बाजार हैं और सबसे ऊंचाई पर स्थित पीठसैंण है यहां आलू प्रचुर मात्रा में उगाया जाता है और अपने स्वाद के कारण पूरे उत्तराखंड में मशहूर हैं।
चौथान की दो मुख्य नयार (नदी) बिनो और मसांड गाड़ दोनों ही दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं से निकलती है और देघाट (कुमाऊँ) में एक हो जाती है। चौथान पट्टी के मुख्य मन्दिरों में सबसे पहले नाम आता है। केदारनाथ के साक्षात स्वरूप बिन्देश्वर मन्दिर का।
ब्रह्मडुंगी: विन्सर मंदिर परिसर से दो किमी० की दूरी पर स्थित एक अति विशाल पत्थर है जिसको देखते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहां से पूरे चौथान के खूबसूरत व विहंगम दर्शन होते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त का तो यहां से बहुत ही सुन्दर और मनोहर नज़ारा देखने को मिलता है। चैत्र मास (मार्च) में जब रवि की फसल तैयार होने लगती है तब ब्रह्मदुंगी के शीर्ष पर स्थित मां भगवती के शांकेतिक मंदिर में दैड़ा गांव के निवासियों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
पीठसैंण दूधातोली वन अभ्यारण्य के अतर्गत बहुत ही ऊंचाई वाले पर्वत श्रृंखलाओं के बीच विद्यमान यह समतल क्षेत्र पीठसैंण नाम से जाना जाता है। यहाँ पर वीर चंद्र सिंह गढ़ी की आदमकद भव्य मूर्ति सरकार द्वारा उनके सम्मान में लगाई गई है उनके नाम पर होने वाले सारे सरकारी कार्यक्रम यही सम्पन होते है पीठसैंण को स्वादिष्ट आलू की पैदावार के लिए भी जाना जाता है। यहां किसी भी स्थान से मोटर मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहीं से विन्सर मंदिर के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है।
उडियार गुफायें : विन्सर मन्दिर से लगभग दो किमी की दूरी पर एक विशाल उधार है इस उडियार को देवता उडियार कहते हैं। यहां किसी काल खंड में शेर रहते थे जिन्होंने कि माता की सवारी माना जाता है वे इस क्षेत्र के रखवाले थे इसीलिए इस स्थान का नाम द्वारपाल पढ़ा है। इस गुफा में दैड़ा गांव के लोग अपने मवेशियों के साथ यहां रहते हैं। इसके ठीक पीछे कुछ दूरी पर एक गुफा और है इस गुफा के अन्दर कुछ वर्ष पहले शान्तिकुन्ज हरिद्वार के एक साधक लगातार दो वर्ष तक तपस्या की।
छायाचौंरी विन्सर और पीठसैंण मार्ग पर एक सुंदर पड़ाव पड़ता है, छायाचौंरी नाम से जाना जाता है। आते जाते राहगीर इस स्थान पर आराम करते हैं। कहते हैं कि इस पवित्र स्थान पर देवताओं की बैठक होती थी। यह स्थल बहुत अद्भुत सुन्दर और दर्शनीय है।
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- Story of Bindeshwar (Binsar) Mahadev The temple is believed to build by Maharaja Prithivi on the memory of his father Bindu. There is old stone made idol inside the temple having no head, called Binsar, and worshipped as lord Shiva. In the ancient time, there was also a natural water source called, Kund.