देवभूमि चौथान के पवित्र धार्मिक स्थल मनोरम वादियों के बीच विराजमान बिंदेश्वर पावन धाम।
मनोरम वादियो के बीच शुशोभित बिंदेश्वर धाम आस्था एवं श्रद्धा का प्रतिक देव भूमि उत्तराखंड पौडी गढ़वाल विकास खण्ड थलीसैंण, पट्टी चौथान में दूधातोली के घने जंगल में बिराजमान है। समुद्रतल से लगभग 2480 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बिंदेश्वर महादेव का यह ऐतिहासिक मंदिर जिसकी बनावट केदार नाथ मंदिर पर आधारित है, मंदिर की ऊँचाई लगभग 70 फुट है, बिंदेश्वर धाम पीठसैण से लगभग 11 किलोमीटर की पैदल यात्रा है तो वही थान गाँव से 7 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई की यात्रा पर इस्थित है, यह मंदिर देवदार, रासल, बाज, बुराश, व कई सुंदर वृक्षों के बीच मनोरम व रमणीक स्थल है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बिंदेश्वर मंदिर को पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दौरान महाबली भीम द्वारा अपने एक पोटली पथरो से एक ही रात मे तैयार किया था, पांडवो ने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहाँ व्यतित किया और इस स्थान पर भैरवनाथ की स्थापना की थी, बाद में यह मंदिर गढ़वाल के चंदेल वंश समेत अनेक राजाओं की देख-रेख में रहा, यहा कालांतर में गढ़वाल की महारानी करणावती ने भी इसका जीणोद्धार किया था लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार सातवीं आठवीं शताब्दी में राजा पिरथु ने अपने पिता बिंदु की याद में इस मंदिर का निर्माण करवाया था, इस लिए इस मंदिर को बिंदेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार जो भी हो लेकिन श्रद्धालुओं की बिंदेश्वर महादेव मंदिर पर अटूट श्रद्धा व आस्था बनी रहती हैं।
मंदिर के अन्दर मुख्य लिंग के साथ साथ कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी बिराजमान है, इन मूर्तियों के निचे पानी का एक बहुत बड़ा कुंड भी है, इस स्थान को बिंदी नाम कहा जाता है, वही मंदिर के चारों ओर कई मूर्तियाँ एवं मठ मौजूद है, मंदिर के मुख्य द्वार पर नागपास युक्त गणेश जी की मूर्ति, हरिगौरी, महिषामर्दिनी, और लक्ष्मीनारायण नन्दी समेत कई प्रतिमाएँ मौजूद है, मंदिर के पूजारी गण बेलवाल जाति से है तो सहायक द्वारपाल जैतवाल जाति के लोग है। मंदिर में स्थापित नन्दीगण स्थल भी है, श्रद्धालु नन्दी के कानों पर इच्छा हेतू जो भी मन्नते मांगते है वह जरूर पूरी होती है, इसके अलावा भैरो मंदिर, नन्दबाबा मंदिर, गणेश मंदिर भी मौजूद है, जो भी श्रद्धालु गणेश जी के सामने पहले माथा टेकते है उनका बिंदेश्वर मंदिर का दर्शन करना अति शुभ माना जाता है ।
यहाँ हर साल कार्तिक मास के बैकुंठ चतुर्थी को भगवान बिंदेश्वर महादेव का विशाल भव्य मेला लगता है, इस दिन निसंतान श्रद्धालु संतान प्राप्ति के लिए रात भर हथेली में दिया जला कर बिंदेश्वर महादेव की आराधना करते है, देश विदेशो से श्रद्धालु भगवान बिन्देश्वर महादेव के दर्शन करने आते है, और भंडारे के रूप में चडावा चडाते हैं। बिन्देश्रर महादेव के पावन धाम से ही विनोनयार नदी का भी उदगम हुआ मान्यताओं के अनुसार विनोनयार भी गंगा की तरह पवित्र है इसमें नहाकर समस्त कष्ट, द्वेष, पापो का अन्त हो जाता। बिन्देश्वेर मंदिर से ढाई किलो मीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में ब्रह्मढुंगी नामक एक विशालकाय पत्थर है। जिसकी परिधि तकरीबन पाँच सौ मीटर है, पत्थर के उपर ब्रह्मचारिणी (भगवती) का पौराणिक मंदिर है, इसकी विधिवत पूजा चैत्र मास में रवि फसल काटने से पूर्व की जाती है,।
बिन्देश्वेर पावन धाम मे बैकुंठ चतुर्थी को लगने वाले मेले का महत्व ही कुछ और निराला है, मेले में झोणा और बौ सरेल लगाने की पारंपरिक रिति रिवाजों की एक अनोखी सुंदरता को दर्शाता है। यहाँ बहु बेटियों द्वारा मेले मे झोणा झुमेलो एवम् बौ सरेल से संपूर्ण मेले की रौनक बड़ जाती है, वही दूसरी ओर ढौल दमो की थाप में लगने वाला देव मंडाण भी मेले की रौनक में चार चाँद लगा देती है।
विगत कुछ वर्षो मे पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर का सर्वेक्षण करके बद्रीनाथ समिति से पहल से मन्दिर का जीर्णोद्धार का कार्य किया गया ओर अब भगवान बिन्देश्वर महादेव का यह मंदिर एक दिव्य ओर भव्य मंदिर के रूप में श्रद्धालुओ का आस्था व श्रद्धा का आकर्षक केन्द्र बन रहा हैं।
Front View Of Binsar Mahadev
Nandi Bail Bindeshwar Mahadev
It is believed that Binsar Mahadev had assigned, Bail Nandi a duty to look after the temple but one day mistakenly BailNandi grazed out the field of” Patwal” people of nearby village called Chokot and When they came to know about this they bust the leg of Nandi, later they felt remorse and since Nandi Bail is worshipped at temple in the form of Black idol.
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- Story of Bindeshwar (Binsar) Mahadev The temple is believed to build by Maharaja Prithivi on the memory of his father Bindu. There is old stone made idol inside the temple having no head, called Binsar, and worshipped as lord Shiva. In the ancient time, there was also a natural water source called, Kund.